दर्द भरी प्रेम कहानी | रोमांटिक प्रेम कहानी | सच्ची प्रेम कहानी इन हिंदी | स्कूल की प्रेम कहानी | गांव की प्रेम कहानी | एक गरीब की सच्ची प्रेम कहानी | क्रिकेट द गेम ऑफ लाइफ | Cricket:The Game Of Life | Dard Bhari School Ki Ronantic Prem Kahani In Hindi For Facebook, Whatsapp, Instagram Captions & Twitter
दर्द भरी प्रेम कहानी | रोमांटिक प्रेम कहानी | सच्ची प्रेम कहानी इन हिंदी | स्कूल की प्रेम कहानी | गांव की प्रेम कहानी | एक गरीब की सच्ची प्रेम कहानी | क्रिकेट द गेम ऑफ लाइफ | Cricket:The Game Of Life | Dard Bhari School Ki Ronantic Prem Kahani In Hindi For Facebook, Whatsapp, Instagram Captions & Twitter :-
प्रिय पाठक बंधु,
मैं अपने हृदय पर हाथ रखकर कह सकता हूं - और कलाकार के लिए इससे बड़ी सौगंध नहीं - कि मैंने कुछ भी ऐसा नहीं लिखा, जो मेरे अंतरमन से नहीं उठा, जो उसमें नहीं उमड़ा-घुमड़ा। यह जो आत्म-चित्रण मैं आपके हाथों में रख रहा हूं इसी प्रकार के मानस - मंथन का परिणाम है।
पहले आप सब को मैं बता दूँ कि मैं एक साधारण मनुष्य हूँ। मेरी दुनिया बहुत ही छोटी हैं - मेरे जो भी थोडे बहुत सगे - सम्बंधी हैं वो मेरे लिए बहुत ही महत्वपूर्ण हैं। सब मेरे लिए बहुत ही खास है - लेकिन क्या मैं भी उनके लिए उतना ही खास हूँ, शायद नही। ये बात मैं नहीं बोल रहा - यह मेरे अंतरात्मा की आवाज है और मैं तो महज एक लिखने का साधन हूँ।
मेरे सगे-सम्बंधी मेरे लिए प्रकृति के जैसे हैं - मतलब थे, हाँ अब शायद थे ही शब्द उपयुक्त हैं। प्रकृति जैसे से तात्पर्य हैं कि उनमें से कोई मेरे लिए सुर्य था तो कोई चाँद। कहते हैं कि मेरी अपनी खुद कि दुनिया थी जिसका मैं स्वयं ही मालिक था। मेरे दुनिया मे धरती, जल, आकाश, बादल और वायु जैसे सब वो प्राकृतिक वस्तुएँ थी जिसके बिना इस संसार का कल्पना ही मिथ्या लगती हो।
पाठक बंधु आप ही कल्पना कीजिए अगर सूर्य, चाँद या प्राकृतिक सम्बंधी तत्व ही प्रकृति के विरूध काम करने लगे तो उस संसार के पालनकर्ता को क्या करना चाहिए। मेरे ही अपनों ने मेरे जीवन को क्रीड़ा (खेल) बना दिया - और आश्चर्य की बात ये कि मेरा पसंदीदा खेल क्रिकेट बना दिया। वो लोग मुझसे बेइमानी कर रहे थे - क्योकि इस खेल में मेरे पास खोने के लिए सबकुछ था और उनके पास शायद कुछ भी नही। फिर भी मैंने क्रिकेट खेला क्योंकि मुझे विश्वास था कि मैं जीत जाऊंगा, क्योंकि मैं सत्य के साथ था और अपने सच्चे व्यक्तित्व और दुनिया का निर्माण कर्ता भी।
मेरे प्रतिद्वंद्वी खिलाड़ी मेरा अपना वही सूर्य था जिसके बिना मेरे जिन्दगी में शायद ही दिन होती और उस खेल का ट्राफी वही चाँद थी, शायद जिसके बिना मेरे रातों की रौनक ही उड़ जाती, मैं करता भी तो क्या। हाँ यह बात भी अटल सत्य हैं कि मैं यह क्रिकेट हारना भी नही चाहता था, क्योंकि शायद इस हार कि वजह से मैं अपना सबकुछ खो देता या मेरे हार के वजह से आने वाले तुफान में मेरा सब कुछ स्वयं ही नष्ट हो जाता।
खेल शुरू हो गया था और खेल बहुत ही रोचक था इस काल्पनिक क्रिकेट में मेरे प्रतिद्वंद्वी खिलाड़ी ने बहुत ही अच्छा प्रदर्शन किया - अब बारी मेरी थी। हाँ एक बात और भी बता दूँ कि इस खेल का निर्णायक मेरी ही चाँद थी। मैं अच्छा खेल रहा था - लेकिन अब खेल एक रोचक मोड़ ले चुका था, आखिरी गेंद पर दो रन बनाने थे मुझे और गेंद फेंकने वाला भी तो कोई साधारण व्यक्ति नहीं था। वो मेरे दुनिया का सूर्य था। इसलिए डर लगना तो स्वाभाविक था। डर तो शायद मेरे प्रतिद्वंद्वी खिलाड़ी को भी थी कि शायद मैं (लेखक) जीत ना जाऊँ, उसका भी डर सार्थक ही था क्योकि उसके प्रतिद्वंद्वी खिलाड़ी के रूप मे स्वयं विष्णु (अपने काल्पनिक दुनिया का निर्माण कर्ता) के समान शक्तियों वाला अजेय खिलाड़ी था।
मैं उस आखिरी गेंद को ज्योहि खेला वह गेंद आसमान को छू गई। आसमान छूने का मतलब ये नहीं था कि उस गेंद पर मुझे छः रन मिलते। दुःखद बात तो ये थी कि वो गेंद मेरे प्रतिद्वंद्वी खिलाड़ी के ऊपर थी जो उसके हाथों में किसी भी क्षण आ सकती थी।
चाँद को भी लगा कि मैं हार जाऊंगा और शायद सूर्य को भी। लेकिन कहते हैं ना कि कुछ भी असमभ्व नहीं हैं, मुझे हारता देख चाँद ने उस गेंद को नो बाॅल बता दिया और सूर्य भी शायद मुझे जीताने के लिए गेंद को छोड़ दिया। यह बात मुझे ज्ञात हो चुकी थी कि मैं क्रिकेट जीता नहीं हूं अपितु मुझे जिताया गया हैं। हाँ ये बात और हैं कि मुझे जीताने में उन दोनों का हाथ था।
अब बारी थी ट्राफी लेने कि परन्तु मैं वहाँ से जा चुका था क्योकि मुझे ज्ञात था कि प्यार होता हैं जीता या जीताया नहीं जा सकता और हाँ वो प्यार/दोस्ती ही क्या जिसमें एहसास ही ना हो और उसको पाने के लिए प्रतियोगिता जीतनी पडे। कहते हैं कि वह सूर्य जिससे मुझे प्रतियोगिता जीतनी थी वह सबको वह चीज दोगुना करके लौटाता हैं जो उसको उनसे मिली होती हैं। उस सूर्य के बारे में तो समाज में ये भी भ्रांति फैली हैं कि वह सबको मुस्कान उपहार स्वरूप भेंट करता हैं।एक सवाल मुझे उस सूर्य से हैं कि क्या उसको मेरे द्वारा कभी प्रतियोगिता मिली थी। दुसरें शब्दों मे बोलू तो क्या उसको मैंने दोस्ती में धोखा दिया था। जब वह सबको खुशीयाँ ही भेंट करता हैं तो उसने मुझे खुशीयां क्यों नही दी और क्यो मेरे ही खुशियों को चुराने का प्रयास किया। कुछ सवाल तो मैं उस चाँद से भी करना चाहता हूँ, लेकिन मैं उससे एक ही सवाल पुछ रहा हूं कि क्या तुम उस काबिल हो क्या कि तुमको पाने के लिए प्रतियोगिता जीतनी पड़े।
हाँ मैं एक बात बता देना चाहता हूँ कि दोस्ती/प्यार में कोई भी ये नही चाहता कि जब वो रूठे तो आप भी रूठो या जब वो सर हिलाएँ तो आप भी सर हिलाओ क्योंकि उसकी परछाई ये काम आपसे कही बेहतर कर सकती हैं। रिश्तों को निभाने के लिए एहसास की जरूरत होती हैं और इसके बिना रिश्तों का नींव ही गिर जाता हैं।
उफ्फ मैं ही गलत था जो वास्तविक परमेश्वर के विरूध जाकर अपने लिए एक अलौकिक दुनिया का निर्माण करना था और ये उस परमेश्वर को कैसे मंजूर होता।शायद इसीलिए उन्होंने मेरी दुनिया ही उजाड दी। अब मैं उनके बनाई इस दुनिया में ही खुश रहता हूँ।
- अमन सिंह
Comments
Post a Comment