चने की उन्नति खेती कैसे करे | चने की खेती की आधुनिक तकनीक जाने | चना की बीज दर | काले चने की खेती | काबुली चना की खेती कैसे करे | डालर चने की उन्नत किस्मे | चने की बुवाई का समय | चने की फसल में खरपतवार नियंत्रण | चने की कटाई का समय | चने की सिंचाई
चने की उन्नति खेती कैसे करे | चने की खेती की आधुनिक तकनीक जाने | चना की बीज दर | काले चने की खेती | काबुली चना की खेती कैसे करे | डालर चने की उन्नत किस्मे | चने की बुवाई का समय | चने की फसल में खरपतवार नियंत्रण | चने की कटाई का समय | चने की सिंचाई :-
भारत में चने की खेती मुख्य रूप से उत्तर प्रदेश, कर्नाटक, मध्यप्रदेश, महाराष्ट्र, राजस्थान तथा बिहार में की जाती है। विश्व के कुल चना उत्पादन का 70 प्रतिशत भारत में होता है। देश के कुल चना क्षेत्रफल का लगभग 88 - 90 प्रतिशत भाग तथा कुल उत्पादन का 90 - 92 प्रतिशत चना इन्ही प्रदेशाें से प्राप्त होता है। भारत में चने की खेती लगभग 7.54 मिलियन हेक्टेयर क्षेत्र में की जाती है जिससे लगभग 7.62 क्विं./हे. के औसत मान से 5.75 मिलियन टन उपज प्राप्त होती है। भारत में सबसे अधिक चने का क्षेत्रफल एवं उत्पादन वाला राज्य मध्यप्रदेश है। चने की खेती के लिए जल निकास वाली उपजाऊ भूमि का चयन करना चाहिए। इसकी खेती हल्की व भारी दोनों प्रकार की भूमि में की जा सकती हैं। मध्यम व भारी मिट्टी के खेतों में गर्मी में एक-दो जुताई करें। मानसून के अंत में व बुवाई से पहले अधिक गहरी जुताई न करें।
जलवायु एवं तापमान :-
चना ठन्डे व शुष्क मौसम की फसल है जिसे रबी मौसम में उगाया जाता हैं। चने के अंकुरण के लिए उच्च तापमान की जरुरत होती है। इसके पौधे के विकास के लिए अत्यधिक कम व मध्यम वर्षा वाले अथवा 60 से 90 सेंटीमीटर वर्षा वाले क्षेत्र उपयुक्त होते हैं। फसल में फूल आने के बाद वर्षा होना हानिकारक होता है।
चने की खेत की तैयारी :-
अंसिचित अवस्था में मानसून शुरू होने से पूर्व गहरी जुताई करने से रबी के लिए भी नमी संरक्षण होता है। एक जुताई मिट्टी पलटने वाले हल तथा 2 जुताई देशी हल से की जाती है। फिर पाटा ( हेंगा ) चलाकर खेत को बराबर कर लिया जाता है। दीमक प्रभावित खेतों में क्लोरपायरीफास मिलाना चाहिए इससे कटुआ कीट पर भी नियंत्रण होता है। चना की खेती के लिए मिट्टी का बारीक होना आवश्यक नहीं है, बल्कि ढेलेदार खेत ही चने की उत्तम फसल के लिए अच्छा समझा जाता है । खरीफ फसल कटने के बाद नमी की पर्याप्त मात्रा होने पर एक जुताई मिट्टी पलटने वाले हल से तथा दो जुताइयाँ देशी हल या ट्रेक्टर से की जाती है और फिर पाटा चलाकर खेत समतल कर लिया जाता है।
दीमक के प्रकोप से बचाव के लिए क्यूनालफॉस 1.5 प्रतिशत या मैलाथियान 4 प्रतिशत चूर्ण 25 किलो प्रति हेक्टेयर की दर से आखिरी जुताई के समय खेत में मिलाएं। प्रति हेक्टेयर 70-80 किलो बीज बोए। कतार से कतार की दुरी 30-40 सेमी. रखें। सिंचित क्षेत्र में 5-7 सेंटीमीटर गहरी व असिंचित क्षेत्र में नमी को देखते हुए 7-10 सेंटीमीटर तक बुवाई कर सकते हैं। धान उगाए जाने वाले क्षेत्रों में दिसम्बर तक चने की बुवाई कर सकते हैं।
चने की उन्नत किस्म :-
चने की बुवाई के लिए पूसा-256, केडब्लूआर-108, डीसीपी 92-3, केडीजी-1168, जीएनजी-1958, जेपी-14, जीएनजी-1581, पूर्वी उत्तर प्रदेश के लिए गुजरात चना-4, मैदानी क्षेत्रों के लिए के-850, पश्चिमी उत्तर प्रदेश के लिए आधार (आरएसजी-936), डब्लूसीजी-1, डब्लूसीजी-2 और बुन्देलखण्ड के लिए संस्तुत प्रजातियों राधे व जे.जी-16 और काबुली चना की पूरे उत्तर प्रदेश के लिए संस्तुत प्रजाति एचके-94-134 पूर्वी उत्तर प्रदेश के लिए पूसा-1003, पश्चिम उत्तर प्रदेश के लिए चमत्कार (वीजी-1053) और बुन्देलखण्ड के लिए संस्तुत जीएनजी-1985, उज्जवल व शुभ्रा प्रजातियों की बुवाई करें।
नोट :- चने की बीज का चयन अपने यहां के जलवायु और मिट्टी के आधार पर ही करे।
चने की बुआई का समय :-
असिंचित क्षेत्र में - 23 सितम्बर से 21 अक्टूबर तक।
सिंचित क्षेत्र में - 21 - 25 दिसम्बर तक चने की बुआई हो जानी चाहिए।
खाद एवं उर्वरक : -
असिंचित क्षेत्रों में 10 किलो नाइट्रोजन और 25 किलो फास्फोरस और सिंचित क्षेत्र में बुवाई से पहले 20 किलो नाइट्रोजन और 40 फास्फोरस प्रति हेक्टेयर 12-15 सेमी की गहराई पर आखिरी जुताई के समय डालना चाहिए तथा गोबर की खाद या कम्पोस्ट पाँच टन प्रति हेक्टेयर के हिसाब से खेत की तैयारी के समय देना चाहिए।
कीट नियंत्रण :-
कटुआ : चने की फसल को अत्यधिक नुकसान पहुँचाता है। इसकी रोकथाम के लिए 20 कि.ग्रा./हे. की दर से क्लोरापायरीफॉस भूमि में मिलाना चाहिए।फली छेदक : इसका प्रकोप फली में दाना बनते समय अधिक होता हैं नियंत्रण नही करने पर उपज में 75 प्रतिशत कमी आ जाती है। इसकी रोकथाम के लिए मोनाक्रोटोफॉस 40 ई.सी 1 लीटर दर से 600-800 ली. पानी में घोलकर फली आते समय फसल पर छिड़काव करना चाहिए।
चने के उकठा रोग नियंत्रण :-
उकठा रोग निरोधक किस्मों का प्रयोग करना चाहिए।
प्रभावित क्षेत्रो में फल चक्र अपनाना लाभकर होता है।
प्रभावित पोधा को उखाडकर नष्ट करना अथवा गढ्ढे में दबा देना चाहिये।
बीज को कार्बेन्डाजिम 2.5 ग्राम या ट्राइकोडर्मा विरडी 4 ग्राम/किलो बीज की दर से उपचारित कर बोना चाहिए।
भंडारण :-
सुखाने के पश्चात दानों में 10-12 प्रतिशत नमी रह जाने पर भंडार गृह में भंडारित कर दें।
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