मजदूर दिवस पर शेर शायरी, स्टेटस, कोट्स, कविता | श्रमिक दिवस पर शायरी | Labour Day Shayari, Status, Quotes, Poetry & Thoughts | Shayari On Workers Day
मजदूर दिवस पर शेर शायरी, स्टेटस, कोट्स, कविता | श्रमिक दिवस पर शायरी | Labour Day Shayari, Status, Quotes, Poetry & Thoughts | Shayari On Workers Day :-
अंतरराष्ट्रीय मजदूर दिवस जो कि 1 मई को पुरी दुनिया में मनाया जाता हैं। इस दिन को पूरे विश्व भर में बड़े धूम धाम से मनाया जाता है, बहुत से देशो में इस दिन पर राष्ट्रीय अवकाश होता है। आज के यह पोस्ट उन्हीं मजदुरों को समर्पित हैं जो अपनी पुरी जिन्दगी दुसरो की ख्वाब पुरा करने में लगा देते हैं और स्वयं कही फुटपाथो पर सो कर गुमनामी के मौत मर जाते हैं।
तो आइए अब हम सब इस आर्टिकल का आनंद उठाएँ और गरीब मजदूरों के सम्मान में अपने रिश्तेदारों और दोस्तों के साथ साझा करे ताकि हम सब अपने दैनिक जीवन में मजदूरों की महत्ता को जान सके।
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Shayari On Workers Day |
बुलंदी मिल नहीं सकती फकत तक़दीर के बल से,
कड़े संघर्ष के छाले ही मंजिल से मिलाते हैं।
थोड़ा कम थका ऐ ज़िंदगी
मजबूर हूँ, मजदूर नहीं।
कभी करना ना घमंड होने पर अपने अमीर,
साहब सुना है कल तुम्हारे घर कि दराज़ इक मजदुर भरकर गया था।
अब उन की ख़्वाब-गाहों में कोई आवाज़ मत करना,
बहुत थक-हार कर फुटपाथ पर मज़दूर सोए हैं।
बोझ उठाना शौक़ कहाँ है मजबूरी का सौदा है,
रहते रहते स्टेशन पर लोग क़ुली हो जाते हैं।
बुलाते हैं हमें मेहनत-कशों के हाथ के छाले,
चलो मुहताज के मुँह में निवाला रख दिया जाए।
उजाले अपनी यादों के हमारे साथ रहने दो,
न जाने किस गली में ज़िंदगी की शाम हो जाए।
जिस दिन से चला हूं मिरी मंज़िल पे नज़र है,
आंखों ने कभी मील का पत्थर नहीं देखा।
हम भी दरिया हैं, हमें अपना हुनर मालूम है,
जिस तरफ़ भी चल पड़ेंगे, रास्ता हो जाएगा।
सियासत की अपनी अलग इक ज़बां है
लिखा हो जो इक़रार, इनकार पढ़ना।
दुनिया मेरी ज़िंदगी के दिन कम करती जाती है क्यूँ,
ख़ून पसीना एक किया है ये मेरी मज़दूरी है।
अगर इस जहाँ में मजदूर का न नामों निशाँ होता,
फिर न होता हवामहल और न ही ताजमहल होता।
होने दो चराग़ाँ महलों में क्या हम को अगर दीवाली है,
मज़दूर हैं हम मज़दूर हैं हम मज़दूर की दुनिया काली है।
ये बात ज़माना याद रखे मज़दूर हैं हम मजबूर नहीं,
ये भूख ग़रीबी बदहाली हरगिज़ हमको मँज़ूर नहीं।
कुचल कुचल के न फ़ुटपाथ को चलो इतना,
यहाँ पे रात को मज़दूर ख़्वाब देखते हैं।
सो जाता है फुटपाथ पे अख़बार बिछाकर,
मजदूर कभी नींद की गोली नहीं खाता।
अमीरी में अक्सर अमीर अपनी सुकून को खोता हैं,
मजदूर खा के सूखी रोटी बड़े आराम से सोता हैं।
पसीने की स्याही से जो लिखते हैं इरादें को,
उसके मुक्कद्दर के सफ़ेद पन्ने कभी कोरे नही होते।
पेड़ के नीचे ज़रा सी छाँव जो उस को मिली,
सो गया मज़दूर तन पर बोरिया ओढ़े हुए।
ख़ून मज़दूर का मिलता जो न तामीरों में,
न हवेली न महल और न कोई घर होता।
मैं अमन सिंह आपका स्वागत करता हूं अपने इस ब्लॉग पर, आपको यहां बहुत ही खूबसूरत शायरियों का कलेक्शन मिलेगा। मैं आशा करता हूं आपको ये शायरियां पसंद आयेगी।
धन्यवाद।।
आपके इस ब्लॉग पर मेरा एक शेर पढ़कर मुझे आनंद हुआ।
ReplyDeleteमुझे इससे अधिक खुशी होती यदि
इसके नीचे मेरा नाम भी होता
हरिशंकर पाण्डेय