आरोप शायरी, स्टेटस, कोट्स एवं कविता | Best Aarop Shayari, Status, Quotes, Poetry & Thoughts
आरोप शायरी, स्टेटस, कोट्स एवं कविता | Best Aarop Shayari, Status, Quotes, Poetry & Thoughts :-
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फिर शाम को आए तो कहा सुबह को यूं ही,
रहता है सदा आप पर इल्ज़ाम हमारा।
जागने वालों की बस्ती से गुज़र जाते हैं ख़्वाब,
भूल थी किसकी मगर इल्ज़ाम रातों पर लगा।
इश्क़ इल्ज़ाम लगाता था हवस पर क्या-क्या,
ये मुनाफ़िक़ भी तेरे वस्ल का भूखा निकला।
महफ़िल से उठ जाने वालो तुम लोगों पर क्या इल्ज़ाम,
तुम आबाद घरों के वासी मैं आवारा और बदनाम।
कमाल का शख्स था जिसने जिन्दगी तबाह कर दी,
राज की बात है दिल उससे खफ़ा अब भी नहीं
गए थे हम उनके आँसू पोछने,
इल्ज़ाम दे दिया की उनको रुला दिया हमने।
उदास जिन्दगी, उदास वक्त, उदास मौसम,
कितनी चीजो पे इल्जाम लगा है तेरे ना होने से।
सबको फिक्र है अपने आप को सही साबित करने की,
जैसे जिन्दगी नहीं कोई इल्जाम है।
कोई इल्जाम रह गया हो तो वो भी दे दो,
पहले भी हम बुरे थे अब थोड़े और सही।
बेवजह दीवार पर इल्जाम है बंटवारे का,
कई लोग एक कमरे में भी अलग रहते हैं।
हर बार हम पर इल्ज़ाम लगा जाते हो मोहब्बत का,
कभी खुद से पूछा है इतने हसीन क्यों हो।
हर बार इल्जाम हम पर ही लगाना ठीक नहीं,
वफ़ा खुद से नहीं होती खफा हम पर होते हो।
तुम मेरे लिए कोई इल्जाम न ढूँढ़ो,
चाहा था तुम्हे यही इल्जाम बहुत है।
इल्जाम जो तुमने दिए साथ लिए फिरता हूँ सदा
खिताब जो मिले दुनिया से अलमारी में कैद है।
आरोप तो लगते रहेंगे हमेशा उनसे उभरेंगे या टूटेंगे वो आपके सोच पे निर्भर करता है।
आरोपों के घात से जब, बचे नहीं भगवान,
अपनी क्या औकात फिर, हम ठहरे इंसान।
हँस कर कबूल क्या कर ली सजाएँ मैंने,
ज़माने ने दस्तूर ही बना लिया हर इलज़ाम मुझ पर मढ़ने का।
लफ्जों से इतना आशिकाना ठीक नहीं है ज़नाब,
किसी के दिल के पार हुए तो इल्जाम क़त्ल का लगेगा।
ये मिलावट का दौर हैं "साहब" यहाँ,
इल्जाम लगायें जाते हैं तारिफों के लिबास में।
बस यही सोचकर कोई सफाई नहीं दी हमने।
कि इलज़ाम झूठे ही सही पर लगाये तो मेरे अपने हैं।
किसे इल्जाम दूँ मैं अपनी बर्बाद जिंदगी का,
वाकई में मोहब्बत जिंदगी बदल देती है।
हुस्न वालों ने क्या कभी की ख़ता कुछ भी?
ये तो हम हैं सर इलज़ाम लिये फिरते हैं।
धूर्तपन की सारी हदें पार हो गई मैंने एक गलती क्या किया
उन्होंने सारी गलतियों का आरोप मुझपर ही मढ़ दिए।
मेरे अल्फ़ाज़ को आदत है हौले से मुस्कुराने की,
मेरे शब्द कि अब किसी पर इल्ज़ाम नहीं लगाते।
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