आरजू पर शायरी, स्टेटस, कोट्स, कविता इन हिन्दी | Shayri, Status, Quotes and SMS On Aarzoo
आरजू पर शायरी, स्टेटस, कोट्स, कविता इन हिन्दी | Shayri, Status, Quotes and SMS On Aarzoo :-
दोस्तों आरजू पर शेर ओ शायरी का एक अच्छा संकलन हम यहां पर प्रकाशित कर रहे है, उम्मीद है यह आपको पसंद आएगा और आप विभिन्न शायरों और लेखको के “आरजू” के बारे में खयालात जान सकेंगे। अगर आपके पास भी “आरजू” पर शायरी हैं तो उसे कमेन्ट बॉक्स में ज़रूर लिखें।
ना खुशी की तलाश है ना गम-ए-निजात की आरज़ू,
मै ख़ुद से ही नाराज हूँ तेरी नाराजगी के बाद।
न किसी के दिल की हूँ आरज़ू
न किसी नज़र की हूँ जुस्तजू
मैं वो फूल हूँ जो उदास हो
न बहार आए तो क्या करूँ
सितारों की महफ़िल ने करके इशारा,
कहा अब तो सारा जहाँ है तुम्हारा,
मुहब्बत जवाँ हो, खुला आसमाँ हो,
करे कोई दिल आरजू और क्या…!
आरज़ू हसरत और उम्मीद शिकायत आँसू,
इक तिरा ज़िक्र था और बीच में क्या क्या निकला।
ग़म-ए-ज़माना ने मजबूर कर दिया वर्ना,
ये आरज़ू थी कि बस तेरी आरज़ू करते।
हम को तर्क-ए-आरज़ू का आज ये सिल मिला
आरज़ू का नाम ले कर आरज़ू शरमा गई।
आरज़ू होनी चाहिए किसी को याद करने की,
लम्हें तो अपने आप ही मिल जाते हैं।
ख़ामोश सा शहर और गुफ़्तगू की आरज़ू।
हम किससे करें बात, कोई बोलता ही नही।।
तेरी आरज़ू मेरा ख्वाब है,
जिसका रास्ता बहुत खराब है,
मेरे ज़ख्म का अंदाज़ा न लगा,
दिल का हर पन्ना दर्द की किताब है।
अब तुझसे शिकायत करना, मेरे हक मे नहीं,
क्योंकि तू आरजू मेरी थी,पर अमानत शायद किसी और की।।
आरजू थी की तेरी बाँहो मे, दम निकले,
लेकिन बेवफा तुम नही,बदनसीब हम निकले।
बड़ी आरजू थी मुलाकात की,
ना जी भर के देखा न कुछ बात की।
ऐसा नहीं कि दिल में कोई आरजू नहीं हैं,
सौ आरजू जमा हैं मगर उनमें तू नहीं हैं।
जिन्दगी बेहाल हैं जरूरतों से उलझ कर,
बेइंतहा आरजूऐं मुकम्मल होनो को मचलती हैं।
इम्तहां ना लो मेरी चाहत का,
मेरी आरजू बस इतनी सी हैं,
जो मेरा हो जाएँ,
फिर वो किसी का ना हो।
एक आरजू ऐसी भी,
जो जानती हूं, ना होगी पूरी रो कभी।
जरूरी नहीं ये बिल्कुल कि तू मेरी हर बात को समझे,
आरजू बस इतनी है कि तू मुझे कुछ तो समझे।
कुछ आग आरज़ू की, उम्मीद का धुआँ कुछ
हाँ राख ही तो ठहरा, अंजाम जिंदगी का
मुददत से थी किसी से मिलने की आरज़ू,
खुवाइश ए दिदार में सब कुछ भुला दिया।
न तख्तो ओ ताज की आरजू,
न बज्म शाह की जुस्तजू,
जो नजर दिल को बदल सके,
मुझे उस निगाह की तलाश है!
दस्तक सुनी तो जाग उठा दर्दे-आरज़ू,
अपनी तरफ क्यों आती नहीं प्यार की हवा।
तुझसे मिले न थे तो कोई आरजू न थी,
देखा तुम्हें तो तेरे तलबगार हो गये।
है आरजू की एक रात तुम आओ ख्वाबोँ में,
बस दुआ हे उस रात की कभी सुबह न हो !!
जीने के आरजू में मरे जा रहे है लोग,
मरने के आरजू में जिया जा रहा हु मैं।
ज़रा शिद्दत से चाहो तभी होगी आरज़ू पूरी,
हम वो नहीं जो तुम्हे खैरात में मिल जायेंगे।
एक पत्थर की आरजू करके,
खुदको ज़ख्मी बना लिया मैंने।
आरज़ू तेरी बरक़रार रहे,
दिल का क्या है रहे, रहे न रहे।
मैं पागल ही सही मगर मैं वो हूँ,
जो तेरी हर आरजू के लिये टूट जाऊँ।
जीने की आरज़ू है,
तो जी चट्टानों की तरह,
वरना पत्तों की तरह,
तुझको हवा ले जायेगी।
साक़ी मुझे भी चाहिए, इक जाम-ए-आरज़ू।
कितने लगेंगे दाम, ज़रा आँख तो मिला।।
कभी कभी सोचता हूँ आखिर यहाँ कौन जीत गया।
मेरी आरज़ू, उसकी ज़िद या फिर मोहब्बत।
साँस रूक जाये भले ही तेरा इन्तज़ार करते-करते,
तेरे दीदार की आरज़ू हरगिज कम ना होगी।
उम-ऐ-दराज लाये थे, मांग के चार दिन।
दो आरजू में कट गए, दो इन्तेजार में।।
ख्वाइश बस इतनी सी है की तुम मेरे लफ़्ज़ों को समझो,
आरज़ू ये नही की लोग वाह वाह करें।
उलझी सी ज़िन्दगी को सवारने की आरजू में बैठे हैं,
कोई अपना दिख जाए शायद उसे पुकारने को बैठे है।
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