Aangan Shayari Status in Hindi | आंगन शायरी, स्टेटस, कोट्स, कविता
Aangan Shayari Status in Hindi | आंगन शायरी, स्टेटस, कोट्स, कविता :-
दोस्तों आँगन पर शेर ओ शायरी का एक अच्छा संकलन हम यहां पर प्रकाशित कर रहे है, उम्मीद है यह आपको पसंद आएगा और आप विभिन्न शायरों और लेखको के “आँगन” के बारे में खयालात जान सकेंगे। अगर आपके पास भी “आँगन” पर शायरी हैं तो उसे कमेन्ट बॉक्स में ज़रूर लिखें।
-अमन सिंह
आंगन में होती तो हम गिरा भी देते साहेब,
कम्बख्त इंसानों ने दीवार दिलों में उठा रखी हैं।
उन्हीं के हाथों की मेहँदी दिलों को भाती है,
जो घर-आँगन में अपने संग खुशियां लाती है।
आँगन के नीम और बरगद मुरझाने लगे हैं,
लगता हैं घर के बच्चे अब मोबाइल चलाने लगे हैं।
वास्ता जब से घर के कोनो से हुआ हैं,
आँगन मेरा मकान बन गया हैं।
अपनी ख्वाहिशो को मैले कपड़ों के साथ रगड कर,
माँ को उनके सपने आँगन की तार पर टाँगते देखा हैं।
शहर के घर में तो केवल हैं दिवारे और छत,
देखना आँगन हो गर तो गाँव जाना चाहिए।
सूने आँगन की उदासी में इज़ाफ़ा हो गया,
चोंच में तिनके लिये जब फ़ाख़्ताये आ गयी।
सारे मतलबी रिश्तों को तोड़ आएं है,
पुराने घर के आँगन में दिल छोड़ आएं है।
संभालकर रखना कदम दिल के आँगन में,
अब फूल खिलता नहीं बस काँटे है चमन में।
दिल के आँगन में इस तरह से आओ,
कि फिर जिंदगी में कभी अँधेरा न हो।
न जाने कितने दाग लग गए दामन में,
जब उसने पाँव रखा किसी गैर के आँगन में।
दूर शहर में हैं उसका घर और आँगन गाँव में हैं,
बड़ा आदमी होकर भी छोटा हैं, कमी दाँव में हैं।
जब पड़ते हैं तेरे यादों के पाँव मेरे घर के आँगन में,
बिखर जाते हैं सारे शब्द चावल के दानो से।
बुढी माँ बाहार रही थी आँगन,
बेटी गैलरी से मिडिया डिलीट कर रही थी।
आज आँगन में खिला हैं गुलाब नया-नया,
कल रात तुम चुपके से यहाँ आई थी ना।
जंगल इमारत की, एक दुजे पे साया,
ना आँगन में तुलसी, ना आँगन का पाया।
आँगन में देख के चुगते दाना चिड़ियाँ को,
लगा ऐसा के जिंदगी यूँ भी कितनी हसीन है।
उसे छत पर टंगे आलीशान झूमर पसंद थे,
और मेरा दिल किसी आँगन में जलते दीप का दीवाना था।
रहती है छाँव क्यों मेरे आँगन में थोड़ी देर,
इस जुर्म पर पड़ोस का वो पेड़ कट गया।
सुना है कि उसने खरीद लिया है करोड़ो का घर शहर में।
मगर आँगन दिखाने वो आज भी बच्चों को गाँव लाता है।
महक उठा है आँगन इस खबर से,
वो ख़ुश्बू लौट आयी है सफर से।
कुछ खामोशियां गाढ़ गया था वो मेरे आँगन में,
इर्दगिर्द कुछ उगने लगा है मेरा खालीपन सूनापन।
बनके चराग हम जलते रहे जिनके आंगन मे,
बुझने के बाद मालूम हुआ वहाँ अंधेरा ही ना था।
जब खिलौने तो महंगे थे, पर खुशियां सस्ती होती थीं,
हमारे आँगन की पानी, हमारी ही कश्ती होती थी।
तुझे तकना, तुझे सुनना, ये मेरा हँसना, व मचल जाना,
मेरे ग़म के आँगन में फ़क़त यही दो चार खुशियाँ हैं।
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