राष्ट्रीय प्रवासी भारतीय दिवस पर शायरी, स्टेटस, कोट्स, सुविचार, स्लोगन, अनमोल कथन, नारे, इमेज, फोटो, कविता एवं हार्दिक शुभकामनाएँ संदेश हिन्दी में | 2021 Happy Rashtriya Pravasi Bharatiya Pravasi Divas Shayari, Status, Quotes, Wishes, Wallpaper, Photos, Images, Slogans, Suvichar, Poetry & Thoughts With Images In Hindi
राष्ट्रीय प्रवासी भारतीय दिवस पर शायरी, स्टेटस, कोट्स, सुविचार, स्लोगन, अनमोल कथन, नारे, इमेज, फोटो, कविता एवं हार्दिक शुभकामनाएँ संदेश हिन्दी में | 2021 Happy Rashtriya Pravasi Bharatiya Pravasi Divas Shayari, Status, Quotes, Wishes, Wallpaper, Photos, Images, Slogans, Suvichar, Poetry & Thoughts With Images In Hindi :-
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हम घर से बहुत दूर हो सकते हैं लेकिन हमारे दिल में मेरे राष्ट्र के रहने के लिए वास्तव में हम अलग नहीं हैं।
ये बात ज़माना याद रखे मज़दूर हैं हम मजबूर नहीं,
ये भूख ग़रीबी बदहाली हरगिज़ हमको मँज़ूर नहीं।
कुचल कुचल के न फ़ुटपाथ को चलो इतना,
यहाँ पे रात को मज़दूर ख़्वाब देखते हैं।
सो जाता है फुटपाथ पे अख़बार बिछाकर,
मजदूर कभी नींद की गोली नहीं खाता।
अमीरी में अक्सर अमीर अपनी सुकून को खोता हैं,
मजदूर खा के सूखी रोटी बड़े आराम से सोता हैं।
बेचता यूं ही नहीं है आदमी ईमान को,
भूख ले जाती है ऐसे मोड़ पर इंसान को।
पसीने की स्याही से जो लिखते हैं इरादें को,
उसके मुक्कद्दर के सफ़ेद पन्ने कभी कोरे नही होते।
2021 Rashtriya Bharatiya Pravasi Divas Quotes With Images :-
अब उन की ख़्वाब-गाहों में कोई आवाज़ मत करना,
बहुत थक-हार कर फ़ुटपाथ पर मज़दूर सोए हैं।
सभी प्रवासी भारतीय भाई बहनों को "प्रवासी भारतीय दिवस" की हार्दिक शुभकामनाये।
"सबसे पहले, हम भारतीय हैं और हमारी विरासत और संस्कृति है जो हमें दुनिया में बाहर जाने और इसे अपनाने के लिए समृद्ध करती है।"
वे अन्य पृष्ठभूमि और देशों के प्रवासियों के लिए रोल मॉडल हैं। वे जहां भी जाते हैं, हमारे मूल्यों और संस्कृति को लेते हैं।
सरकार का प्रयास अधिकतम सुविधा प्रदान करना है और उन श्रमिकों को कम से कम असुविधा सुनिश्चित करना है जो विदेश में आर्थिक अवसरों की तलाश करते हैं।
भारतीय प्रवासी दुसरे अन्य देश की प्रगति के लिए भी अपना सर्वश्रेष्ठ योगदान दिया है।
दुनिया भर में खिलने वाली भारत की प्रत्येक कली को सलाम जिन्होंने भारत को गौरवान्वित किया।
ख़ामोश रात के आंसू सिसकती करवटें तो चुप रह जाती हैं,
तकिये की नमी बिस्तर की सिलवटें सवेरे सब कह जाती हैं।
मैं......मजदूर हूँ.....प्रवासी मजदूर
मैं......मजबूर हूँ.....प्रवासी मजबूर।
कभी आया तो गांव को छोड़कर,
इन महानगरों की तरफ
चार पैसे कमाने, दो वक्त की रोटी के लिए।
छोड़ आया था माँ - बाप को पीछे कहीं,
आँखों में कुछ नई रोशनी की उम्मीद लिए।।
महानगरों में ये सड़क, ये दुकान,
ये बड़े-बड़े मकानों को बनाने के लिए।
सतत बहाया है मैंने अपना स्वेदरूपी रक्त,
इन बड़े फैले मॉलों की सजाने के लिए।।
आज महामारी के इस प्रलयकारी दौर में,
याद आ गयी फिर से गांव की वो धरा।
दो दिन तक पेट की भूख तृप्त न कर सका ये शहर,
पर मेरे गांव में आज तक कोई भूखा ना मरा।।
देखकर भूखे बच्चों की सिसकियां
बिलखती आंखों से टपकते वो आँसू।
मन की गहराइयों में उतरी उदासी को लिए,
संग में मिली पहचान प्रवासी को लिए।।
गाँव लौट रहा हूँ सड़कों और पगडंडियों के रास्ते,
पटरियों पर कुचला जाऊं या सड़कों पर रौंदा जाऊं।
बैल बनकर गाड़ी को खींचूं या तड़पकर भूख से मर जाऊं।।
खून में सनी रोटियाँ और समान
इसका जवाब मांगेगा ।
मेरा यह वर्तमान भविष्य में अतीत बनकर
इसका हिसाब मांगेगा ।।
मैं..... मजदूर हूँ.....प्रवासी मजदूर।
मैं .....मजबूर हूँ ....प्रवासी मजबूर।।
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