अच्छे / बुरे वक्त पर शायरी, स्टेटस, कोट्स, कविता | Best Waqt / Time Shayari, Status, Quotes, Poetry & Thoughts
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Time Shayari |
ना उसने मुड़ कर देखा ना हमने पलट कर आवाज दी,
अजीब सा वक्त था जिसने दोनो को पत्थर बना दिया।
वक्त, मौसम और लोगों की एक ही फितरत होती है,
कब, कौन और कहाँ बदल जाए कुछ कह नहीं सकते।
कलाई पर घड़ी बांध लेने से वक्त नहीं थमता,
उसे जीना पड़ता है ,ताकि लम्हा यादो मै कैद हो जाये।
वक्त का सितम कम था जो तुम भी शामिल हो गई,
पर जो भी हो तुम दोनो ने मिलकर बहुत रूलाया है मुझे।
मेरे साथ बैठकर वक्त भी रोया एक दिन,
बोला बन्दा तु ठिक है मै ही खराब चल रहा हूँ।
रोना तो खूब चाहता था,
पर ज़िम्मेदारीयों ने इतना वक्त भी ना दिया मुझे।
कभी वक्त निकाल के हमसे बातें करके देखना,
हम भी बहुत जल्दी बातों मे आ जाते है।
कुछ इस कदर खोये हैं तेरे ख्यालो में,
कोई वक़्त भी पुछता है तो तेरा नाम बता देते हैं।
वक़्त बर्बाद करने वालों को,
वक़्त बर्बाद कर के छोड़ेगा।
उसकी कदर करने में जरा भी देर मत करना,
जो इस दौर में भी आपको वक्त देता हो।
वक़्त रहते इश्क़ की कदर करें,
ताज़महल दुनिया ने देखा है मुमताज़ ने नहीं।
तुम ने वो वक्त कहां देखा जो गुजरता ही नहीं,
दर्द की रात किसे कहते हैं तुम क्या जानो।
सब एक नज़र फेंक के बढ़ जाते हैं आगे,
मैं वक़्त के शो-केस में चुप-चाप खड़ा हूँ।
वक्त की धुंध में छुप जाते हैं ताल्लुक,
बहुत दिनों तक किसी की आँख से ओझल ना रहिये।
उलझ गया था तुम्हारे दुपट्टे का कोना मेरी घड़ी से,
वक्त तब से जो रुका है तो अब तक रुका ही पड़ा है।
तुम ने वो वक्त कहां देखा जो गुजरता ही नहीं,
दर्द की रात किसे कहते हैं तुम क्या जानो।
सब एक नज़र फेंक के बढ़ जाते हैं आगे,
मैं वक़्त के शो-केस में चुप-चाप खड़ा हूँ।
वक्त की धुंध में छुप जाते हैं ताल्लुक,
बहुत दिनों तक किसी की आँख से ओझल ना रहिये।
उलझ गया था तुम्हारे दुपट्टे का कोना मेरी घड़ी से,
वक्त तब से जो रुका है तो अब तक रुका ही पड़ा है।
माँगना ही छोड़ दिया हमने वक्त किसी से,
क्या पता उनके पास इंकार का भी वक्त ना हो।
उस वक्त इंतजार का आलम ना पुछिये,
जब कोई बार बार कहे आ रहा हूं मैं।
गया जो हाथ से वो वक़्त फिर नहीं आता,
कहाँ उम्मीद कि फिर दिन फिरें हमारे अब।
किस तरह उम्र को जाते देखूँ,
वक़्त को आँखों से ओझल कर दे।
वक़्त का क़ाफ़िला आता है गुज़र जाता है,
आदमी अपनी ही मंज़िल में ठहर जाता है।
बख्शे हम भी न गए बख्शे तुम भी न जाओगे,
वक्त जानता है हर चेहरे को बेनकाब करना।
जिन किताबों पे सलीक़े से जमी वक़्त की गर्द,
उन किताबों में ही यादों के ख़ज़ाने निकले।
कल मिला वक़्त तो ज़ुल्फ़ें तेरी सुलझा दूंगा,
आज उलझा हूँ ज़रा वक़्त के सुलझाने में।
सियाह रात नहीं लेती नाम ढलने का,
यही तो वक़्त है सूरज तेरे निकलने का।
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