बस्ती पर शायरी, स्टेटस, कोट्स, कविता इन हिन्दी | Best Basti Shayri, Status, Quotes, Poetry & Thoughts
बस्ती पर शायरी, स्टेटस, कोट्स, कविता इन हिन्दी | Best Basti Shayri, Status, Quotes, Poetry & Thoughts :-
दोस्तों बस्ती पर शेर ओ शायरी का एक अच्छा संकलन हम यहां पर प्रकाशित कर रहे है, उम्मीद है यह आपको पसंद आएगा और आप विभिन्न शायरों और लेखको के “बस्ती” के बारे में खयालात जान सकेंगे। अगर आपके पास भी “बस्ती” पर शायरी हैं तो उसे कमेन्ट बॉक्स में ज़रूर लिखें।
अब गाँव को नहीं जा पाता हूं 'राॅयल'
कि मेरी बस्ती में अब शहर आ गया हैं।
-अमन सिंह
कहाँ ढूंढेंगे इस बस्ती में मेरे कातिल को,
एक काम कीजिए, ये इल्जाम भी मेरे ही सर डाल दीजिए।
नहीं बस्ती किसी और की सूरत अब इन आँखों में,
काश की हमने तुझे इतने गौर से ना देखा होता।
घर गुलज़ार, सूने शहर,
बस्ती बस्ती में कैद हर हस्ती हो गई,
आज फिर ज़िन्दगी महँगी
और दौलत सस्ती हो गई।
ये चंद लोग जो बस्ती में सबसे अच्छे हैं,
उन्हीं का हाथ है मुझको बुरा बनाने में।
संभल कर चल नादान, ये इंसानों की बस्ती हैं,
ये तो रब को भी आजमा लेते हैं, तेरी क्या हस्ती हैं।
गरीब की बस्ती में ज़रा जा कर तो देखो दोस्तों,
वहां बच्चे भुखे तो मिलेंगे पर उदास नही।
सामान बांधो, अब चलो ग़ालिब,
अब इस मुहब्बत की बस्ती में वो बसती नहीं।
उजाड़ दी तमाम बस्ती उसने गांवों की,
वो अब ऊंचे महलों में सुकून ढूंढा करता है।
चोरों की बस्ती में रहते हैं हम,
और तिजोरी भी खुली छोड़ रखी है।
वो बस्ती भी इक बस्ती थी ये बस्ती भी इक बस्ती है,
वहाँ टूट के दिल जुड़ जाते थे यहाँ कोई ख़याल नहीं होता।
इंसानों की बस्ती है,
इस जंगल में क्यूँ ठहरो।
एक चिंगारी नज़र आई थी बस्ती में उसे,
वो भी अलग हट गयी आधियों को इशारा करके।
इस बस्ती में कौन हमारे आँसू पोंछेगा,
जो मिलता है उसका दामन भीगा लगता है।
अजीब सी बस्ती में ठिकाना है मेरा,
जहाँ लोग मिलते कम झांकते ज़्यादा है।
तेरे कूचे में जो आया है ग़ुलामों की तरह,
अपनी बस्ती का सिकंदर भी तो हो सकता हैं।
हादसों के जद आके क्या मुस्कुराना छोड़ देंगे,
एक बस्ती बिखर गयी तो क्या बस्ती बसाना छोड़ देंगे।
वो हो जायेंगे खुश कुछ पतगें लूट कर ही,
ऐ हवा तु अपना रुख गरीबों की बस्ती तरफ ही रखना।
शायरों की बस्ती में कदम रखा तो जाना,
गमों की महफिल भी कमाल जमती है।
हीरों की बस्ती में हमने कांच ही कांच बटोरे हैं;
कितने लिखे फसाने फिर भी सारे कागज़ कोरे है।
उस दिल की बस्ती में आज भी अजीब सन्नाटा है,
जिस में कभी तेरी हर बात पर महफिल सजा करती थी।
आशिकों की बस्ती में ये टूटा मकान किसका हैं,
कहीं पे दिल कहीं पे जान ये बिखरा सामान किसका है।
Comments
Post a Comment