घर शायरी, स्टेटस, कोट्स, कविता | Best Ghar Shayari, Status, Quotes, Poetry & Thoughts
घर शायरी, स्टेटस, कोट्स, कविता | Best Ghar Shayari, Status, Quotes, Poetry & Thoughts :-
Find the Best Ghar Shayari, Status, Quotes from top Writer's only on हिन्दी Express. Also find trending photos.
तन्हाई को घर से रुख़सत कर तो दो,
सोचो किस के घर जायेगी तन्हाई।
याद नहीं क्या क्या देखा था सारे मन्ज़र भूल गए,
उस की गलियों से जब लौटे अपना भी घर भूल गए।
सुनते हैं के अपने ही थे घर लूटने वाले,
अच्छा हुआ मैं ने ये तमाशा नहीं देखा।
कल जाने कैसे होंगे कहाँ होंगे घर के लोग,
आँखों में एक बार भरा घर समेट लूँ।
इलाही मेरे दोस्त हों खैरियत से,
ये क्यूँ घर में पत्थर नहीं आ रहे हैं।
उसे कहना कि पलकों पर ना टाँके ख़्वाब की झालर,
समन्दर के किनारे घर बना के कुछ नहीं मिलता।
बहुत से लोग थे महमाँ मेरे घर लेकिन,
वो जानता था कि एहतेमाम किस के लिए हैं।
अकेला उस को न छोड़ा जो घर से निकला वो,
हर इक बहाने से मैं उस सनम के साथ रहा।
दर-ब-दर ठोकरें खाईं तो ये मालूम हुआ,
घर किसे कहते हैं क्या चीज़ है बे-घर होना।
मकाँ है क़ब्र जिसे लोग ख़ुद बनाते हैं,
मैं अपने घर में हूँ या मैं किसी मज़ार में हूँ।
पता अब तक नहीं बदला हमारा,
वही घर हैं वही किस्सा हमारा।
तुम बहते पानी से हो हर शक्ल में ढल जाते हो,
मैं रेत सा हूँ मुझसे कच्चे घर भी नहीं बनते।
वो आए घर में हमारे खुदा की कुदरत हैं,
कभी हम उनको कभी अपने घर को देखते हैं।
मंज़िलें खींच लाती हैं घर से दूर,
वरना अपने मुहल्ले की तंग गलियाँ क्या कम थीं।
ख्वाहिशों के महलों में रहने से अच्छा है,
जरूरतों की गलियों में एक छोटा सा घर बनाना।
हसीना ने मस्जिद के सामने घर क्या खरीदा,
पल भर में सारा शहर नमाज़ी हो गया।
ये सर्द रात ये तन्हाईयाँ ये नींद का बोझ,
हम अपने शहर में होते तो घर गए होते।
शहर भर में मजदूर जैसे दर-बदर कोई न था,
जिसने सबका घर बनाया, उसका घर कोई न था।
काश मेरा घर तेरे घर के बराबर होता,
तू ना आती तेरी आवाज़ तो आती।
बाज़ार जा के ख़ुद का कभी दाम पूछना,
तुम जैसे हर दुकान में सामान हैं बहुत,
आवाज़ बर्तनों की घर में दबी रहे,
बाहर जो सुनने वाले हैं, शैतान हैं बहुत।
बड़े अनमोल है ये खून के रिश्तें इनको तू बेकार ना कर,
मेरा हिस्सा भी तू ले ले मेरे भाई घर के आँगन में दीवार ना कर।
घर की खूबसूरती घर की बनावट से नहीं,
वहा रहने वालो लोगों से होती हैं।
आज भी मेरी आंखे घर के दरवाज़े पर टिकी रहती हैं,
की तुम जरुर आओगे।
सुनो, तुम एक बार पुछ लो कि 'कैसा हुँ,
घर मेँ पङी सारी दवाईयाँ ना फेँक दुँ तो कहना।
दीवार क्या गिरी मेरे कच्चे मकान की फ़राज़,
लोगों ने मेरे घर से रास्ते बना लिए।
सब कुछ तो है क्या ढूँढ़ती रहती हैं निगाहें,
क्या बात है मैं वक़्त पे घर क्यूँ नहीं जाता।
पहले हर चीज़ थी अपनी मगर अब लगता है,
अपने ही घर में किसी दूसरे घर के हम हैं।
लोग टूट जाते हैं एक घर बनाने में,
तुम तरस नहीं खाते बस्तियां जलाने में?
पहले हम ने घर बना कर फ़ासले पैदा किए,
फिर उठा दीं और दीवारें घरों के दरमियाँ।
रहता रहा दिवारो में,
तुम होते तो घर होता।
कोई भी घर में समझता न था मिरे दुख सुख,
एक अजनबी की तरह मैं ख़ुद अपने घर में था।
चले हैं घर से तो धूप से भी जूझना होगा,
सफ़र मे हर जगह घने बरगद नही मिलते।
कैफ़' परदेस में मत याद करो अपना मकाँ,
अब के बारिश ने उसे तोड़ गिराया होगा।
बारिश का इंतज़ार कितनी सिद्दत से करता है किसान,
मालूम है उसे जबकि उसका घर मिट्टी का है।
मैं अमन सिंह आपका स्वागत करता हूं अपने इस ब्लॉग पर, आपको यहां बहुत ही खूबसूरत शायरियों का कलेक्शन मिलेगा। मैं आशा करता हूं आपको ये शायरियां पसंद आयेगी।
धन्यवाद।।
Comments
Post a Comment